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ज्ञानवापी मस्जिद ओर बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर कंपाउंड का मामला बड़े लंबे समय से चल रहा है। इस विवाद को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्टने एक महत्व पूर्ण फेसला सुनाया है। तो चलीए जानते है ये पूरा मामला क्या था ओर कोर्टने क्या फेसला लिया है। 

इतिहास     

बनारस, वाराणसी मे जो बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर है। उसके बगल मे ही ज्ञानवापी मस्जिद हे। ओर हिन्दुओ का मानना है की काशी विश्वनाथ का जो शिवलिंग है। वो इसी मस्जिद मे है। इस लिए इस मस्जिद को बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर कंपाउंड का हिस्सा माना जाए ओर हिन्दूओ को उसमे प्रार्थना एवं पूजा करने की अनुमति दी जाए। 

1991 मे सबसे पहेले वाराणसी कोर्ट मे पिटिसन डाला गया था ओर हिन्दुओ की तीन डिमांड रखी गई। 

  1.  ज्ञानवापी मस्जिद है उसको काशी विश्वनाथ मंदिर कंपाउंड का भाग माना जाए। 
  2. मुस्लिम समुदाय को ज्ञानवापी मस्जिद से हटाया जाए । 
  3. ज्ञानवापी मस्जिद को गिराया जाए। 

पिटीशनर का मानना था की भगवान काशी विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग ज्ञानवापी मस्जिद मे है। इस लिए इस मस्जिद को बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर कंपाउंड मे समावेश करना चाहिए। काशी विश्वनाथका जो एरिया है। उसको ओरंगजेबने 1669 मे तोड़कर ज्ञानवापी 

मस्जिद बनाया था। इसी कारण मुस्लिम को नमाज अदा करने का कोई अधिकार नहीं है। 

डिफ़ेन्डर का कहेना है की, ज्ञानव्यापी मस्जिद है। वो पहेले से ही मुस्लिम समुदाय का भाग रहा है। इसलिए हिन्दुओ का उसमे कोई अधिकार नहीं ।  

1998 मे मुस्लिम कमिटी अंजुमान इत्जामिया मस्जिद कमिटी द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट मे फ़ाइल किया गया ओर उन्होंने बताया की कोर्ट इसमे दाखल नहीं दे सकता क्योंकि places of worship act 1991 मे कहा गया है की 1947 तक देशमे जीतने भी मंदिर मस्जिद है, उसको वही नाम से बोला जाएगा जिसको 1947 तक बोला जाता हो। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मस्जिद पर 22 साल का स्टे ऑर्डर दिया ओर कहा की 2022 तक इस मुद्दे पर कोई निर्णय ना लिया जाए, 

2019 मे इस मस्जिद मे Archaeological survey करने के लिए पिटीशन किया गया। 2020 मे अंजुमान इत्जामिया मस्जिद कमिटी द्वारा विरोध किया गया ओर सर्वे करना पूरी तरह से गलत है। ओर 2020 मे स्टे समय अवधि पूरी हो जाती है। ओर वाराणसी कोर्ट को इसके ऊपर सुनवाई करने के लिए पिटीशन डाला गया। 

इसके बाद पाँच हिन्दू महिला द्वारा पिटिसन डाला जाता है। ओर उसमे कहा गया की ” हमे मस्जिद के बॉउन्ड्री दीवाल के बाहर रहेकर प्रार्थना करने की अनुमती दी जाए ” तब कोर्टने कहा की “मस्जिद के अंदर सर्वे करके ये जाने की उसमे शिवलिंग हे या नहीं ।”  

सबसे पहेले ये याचिका सिविल कोर्ट मे डाला गया था। लेकिन ये मामला बहोत ही संवेदन शील होने के कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश तहेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मे ट्रांसफर किया गया। ओर सुप्रीम कोर्टने कहा की ये याचिका स्वीकार करने लायक है भी या नहीं, क्योंकि मुस्लिम कमिटी द्वारा कहा गया था की ये पिटीशन स्वीकार नहीं की जा सकती  क्योंकि Places of worship act 1991 इसकी अनुमति नहीं देती । 

Places of worship act 1991  

1991 मे नरशिम्हा राव की सरकार ने ये कानून बनाया था । 15 august 1947 तक किसी भी धार्मिक जगह का नाम जो भी होगा उसको वेसे ही रहने दिया जाएगा । उसमे कोई बदलाव नहीं किया जाएगा । ओर इस कानून के तहत बाबरी मस्जिद एवं रामजन्म भूमि को इसमे सामील नहीं किया जाएगा। 

वाराणसी कोर्ट द्वारा हिन्दूओ की याचिका स्वीकार की गई है । लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। ………….   

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